Rishi Panchami
ऋषि पंचमी
ऋषि पंचमी के दिन रक्षाबंधन
माहेश्वरी समाज के समाज जन ‘ऋषि पंचमी’ के दिन बड़े उत्साह से रक्षाबंधन का त्यौहार मनाते है।
माहेश्वरी समाज में ऋषि पंचमी के दिन रक्षाबंधन मनाने की क्या विशेषता है ?
एक किंवदंती के अनुसार यह माना जाता है कि सर्वप्रथम भगवान गणेश जी को उनकी बहन ने ऋषि पंचमी के दिन ही राखी बाँधी थी। जैसा की सर्व विदित है हम माहेश्वरी महेश भगवान के वंशज है तो इस वजह से ही हम ऋषि पंचमी के दिन राखी का पर्व मनाते है।
ऋषिपंचमी का त्यौहार हिन्दू पंचांग के भाद्रपद महीने में शुक्ल पक्ष पंचमी को मनाया जाता है। यह त्यौहार गणेश चतुर्थी के अगले दिन होता है। यह त्यौहार हम रक्षा का सूत्र बांधकर और सप्त ऋषियों के प्रति श्रद्धा भाव व्यक्त करके मनाते है।
माहेश्वरी समाज की उत्पत्ति की कथा में यह वर्णन है कि 72 उमरावों में प्राणशक्ति प्रवाहित करके शिव-पार्वती अंतर्ध्यान हो गए। तत्पश्चात उनके गुरुओं ने अर्थात ऋषियों ने उनको विशेष रूप से रक्षा सूत्र बाँधा था। यह रक्षासूत्र एक पंचरंगी धागा ‘मौलीं’ के रूप में बाँधा जाता है। यह प्रथा आज में हमारे समाज में जीवित है, ऋषिपंचमी वाले दिन ब्राह्मण समाज के लोग घर आकर रक्षा का सूत्र बांधते है।
उस वक़्त इस मंत्र का उच्चारण किया गया जाता है –
“स्वस्त्यस्तु ते कुशलमस्तु चिरायुरस्तु, विद्याविवेककृतिकौशलसिद्धिरस्तु।
ऐश्वर्यमस्तु विजयोऽस्तु गुरुभक्ति रस्तु, वंशे सदैव भवतां हि सुदिव्यमस्तु।।”
अर्थात आप हमेशा आनंद से कुशल, मंगल से रहे एवं आपको दीर्घ आयु मिले। विद्या, विवेक तथा कार्य कुशलता प्राप्त हो। ऐश्वर्य, सफलता प्राप्त हो तथा गुरू भक्ति बनी रहे। आपका वंश हमेशा दिव्य गुणों को धारण करें।
ऋषि पंचमी के दिन बहन व्रत करके अपने भाई को तिलक करके राखी बाँधती हैं और श्रीफल देती है। राखी पूर्णिमा को बहन अपने भाई से स्वयं की रक्षा करते रहने की प्रार्थना करती हैं परंतु ऋषि पंचमी को वह भगवान से अपने भाई की कुशल मंगल की कामना करती है। बहन भाई की दीर्घायु के लिए व्रत रखती है जिसमें पूजा के पश्चात सिर्फ चावल के बने भोजन को ग्रहण किया जाता है। पूजा में तृण (दूब) से 6 भाई जिनको सफ़ेद वस्त्र पहनाते है और 1 बहन जिसे लाल वस्त्र पहनाकर पूजा करते है।
रक्षा सूत्रों एक ऐसा बंधन है जो मंत्रों द्वारा परिवार के हाथों में कलावा बाँधने से सभी कुशल मंगल से रहे और सभी की मुसीबत के समय रक्षा हो।